चैत्र नवरात्रि के शंखनाद और श्लोक से जहां नववर्ष की शुरुआत से भक्तिमय वातावरण बना है, वहीं चैती छठ गीतों के बोल और धुन छठ-घाट के पावन और मनोरम दृश्य की ओर मन को आकर्षित कर रहे हैं।
वैसे तो चैती छठ को कार्तिक छठ की तरह व्यापक तौर पर लोग नहीं करते हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे मीडिया के प्रभाव, साधन सुविधा और इसके महत्व ने लोगों को पहले की अपेक्षा अपनी ओर ज्यादा खींचा है। यही वजह है कि गर्मी और तपिश में भी श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि पहले ज्यादा लोग इस चैत्र छठ से अवगत नहीं थे पर अब लोग इस व्रत को कर रहे हैं।
बात जब नई पीढ़ी की हो तो यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि आज की पीढ़ी जितनी एडुकेटेड है उतनी ही ज्यादा आध्यात्मिक भी। आधुनिकता में नई पीढ़ी जहां जिंस में ज्यादा कम्फर्टेबल फील करती है वहीं देश तो क्या विदेशों में भी नाक से सिंदूर, माथे पर दउरा और छठ के पारंपरिक गीतों से अपनी परंपराओं की छाप छोड़ देती है।
छठ पूजा की एक जो सबसे बड़ी खासियत है वो ये कि इसकी हर जगह समानता है। देश-प्रदेश हर जगह एक ही विध है।
तीन दिन तक का उपवास, अस्ताचलगामी और उदित सूर्य को अर्घ्य और परंपरागत चूल्हे पर हाथ से पीसी चक्की के आटे का बना इसका प्रसाद ठेकुआ और कचवनीया। क्या बिहार का गंगा घाट क्या मुंबई की जुहू बीच हर जगह एक सी खुशबू और कांच ही बहंगीया के गीत। सच! बिहारी होने का गर्व महसूस होता है!
वैसे तो थोड़ी बहुत तादात में प्रदेश के हर जगह चैती छठ लोग करते हैं लेकिन कुछ खास जगहों पर इसकी विशेष पहचान है जैसे औरंगाबाद का प्रसिद्ध देव मंदिर, रोहतास जिले का भलुनी धाम, पटना, बक्सर और भागलपुर के छठ घाटों पर गर्मी के इस मौसम में भी आस्था देखी जा सकती है।
कई जगहों पर घाट पर पानी की कमी और गर्मी को देखते हुए सुविधा के तहत अपने घरों की छतों या आंगन में भी छठ पूजा सम्पन्न कर लेते हैं। सामूहिक पर्व होने के बावजूद पहले की अपेक्षा घर पर ही छठ पूजा का प्रचलन बढ़ा है।
लेखिका – नंदिनी मिश्रा।